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चैलेंजिंग था चक्रव्यूह में रोल : ईशा गुप्ता

कशिश फिल्म उद्योग के जाने -माने निर्देशक महेश भट्ट ने उनको एंजिलीना जोली का खिताब दिया है ।उनकी पिछली दो फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफलता का परचम लहरा चुकी हैं ।जी हां, हम बात कर रहे हैं ,जन्नत 2 और राज़ 2 की हीरोइन ईशा गुप्ता की ।अपनी पिछली फिल्मों में ईशा गुप्ता काफी बोल्ड […]
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कशिश

फिल्म उद्योग के जाने -माने निर्देशक महेश भट्ट ने उनको एंजिलीना जोली का खिताब दिया है ।उनकी पिछली दो फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफलता का परचम लहरा चुकी हैं ।जी हां, हम बात कर रहे हैं ,जन्नत 2 और राज़ 2 की हीरोइन ईशा गुप्ता की ।अपनी पिछली फिल्मों में ईशा गुप्ता काफी बोल्ड और ग्लैमरस अंदाज़ में नज़र आयी थीं ।पर अब वे प्रकाश झा की बहुचर्चित फिल्म ,चक्रव्यूह में आईपीएस अफसर के नॉन -ग्लेम अंदाज़ में नज़र आ रही हैं ।इस खास मुलाकात में ईशा अपनी इस नयी फिल्म के अलावा कई मुद्दों पर बात करती हैं।

यों मिली चक्रव्यूह

मैं उन दिनों राज़ 3 की शूटिंग कर रही थी ,जब मुझे प्रकाश जी ने इस रोल का ऑफर दिया और मैंने ये मौका झट से अपना लिया।जब मैंने भट्ट साहेब  से इस प्रस्ताव के बारे में बताया तो वे बोले हम तुम्हें डेट्स दे देंगे चाहे 2-3 मिनट का ही रोल क्यों न हो?  इसमें मैं एक आईपीएस अफसर रिहा मेनन का रोल कर रही  हूं जो 30 -35 साल के एज ग्रुप की है फिर इसमें मुझे डी -ग्लेम  लुक अपनाने का भी मौका मिला है।

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चैलेंजिंग था रोल

 कईयों का मानना था कि मुझे ये रोल अपने करिअर के  शुरुआती दौर में नहीं करना चाहिए क्योंकि ये एक आई पी एस अफसर का रोल था  और मुझे इसमें अपनी उम्र से बड़ा लगना  था। फिर डी -ग्लेम लुक तो था ही।मेरा रोल भी बहुत बड़ा नहीं था।मगर इन्हें मैंने एक चुनौती के तौर  पर लिया।मैं आर्मी बैकग्राउंड से हूं तो मुझे नक्स़ली समस्या की जानकारी थी।फिर प्रकाश सर ने इतनी रिसर्च की थी कि इसे करने में बहुत मज़ा आया।हम सीआरपीएफ  के जवानों से मिले तो देखकर बहुत अ$फसोस हुआ कि उन्हें किस बदतर हालत में रहना पड़ता है। प्रकाश जी नक्सलियों से मिले,सीआरपीएफ के जवानों से मिले ,राजनीतिज्ञों  से मिले और ढेर सारी जानकारी ली।तब मुझे पता चला कि नक्सली एक जगह पर 3-4 घंटे से ज्यादा समय नहीं रहते।

हम सभी चक्रव्यूह में

फिल्म में हर किरदार आपको चक्रव्यूह में फंसा नज़र आता है।फिल्म में एक मुद्दा है नक्सल का कि कैसे ये इतनी बड़ी ज्वलंत समस्या सालों से है और उसे इग्नोर किया जा रहा है।फिल्म के ज़रिये प्रकाश जी ने दिखाया है कि कैसे देश के अन्दर अपनों के बीच एक महायुद्ध छिड़ा  हुआ है।
बलात्कार की सजा हो मौत
यों हमारे देश में नक्सल के अलावा कई समस्याएं हैं।पर मुझे लगता है रेप एक ऐसी समस्या है ,जिसकी कोई माफी नहीं होनी चाहिए।ये सुनने में भले क्रूर लगे पर बलात्कारियों को सजा-ए -मौत होनी चाहिए।मैं  दिल्ली से हूं और दिल्ली में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से मैं बहुत डरी  हुई हूं।जो लोग ये कहते हैं कि औरत का पहनावा इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है ,मैं उनका सख्त विरोध करती हूं।  औरत को पूरा हक है कि वो अपनी पसंद के कपड़े पहने। मुझे लगता है सरकार को इस मुद्दे पर कड़े कदम उठाने चाहिए।

वो डरावना अनुभव

 फिल्म की शूटिंग के दौरान ऐसा मौका आया जब मैं बुरी तरह डर  गयी थी।फिल्म में अभय और अंजलि नक्सल बनें हैं और मैं और अर्जुन पुलिस अफसर तो जहां हम शूटिंग कर रहे थे वो वेली नक्स़ली कैम्प के बेहद करीब थी।हमें लगा कि नक्सल अभय और अंजलि को तो अपना आदमी मानकर छोड़ देंगे मगर हमें असली पुलिस वाला समझकर मार डालेंगे।मुझे डर था कि मुझे कहीं कुछ हो न जाए।पर कुछ हुआ नहीं।वेली में 55 डिग्री तापमान था। ओम पुरी और मेरे बीच के एक इन्टरोगेशन के सीन में तो हमारे ऐसे पसीने छूटे  कि हालत खराब हो गयी।

मेरी आदर्श मेरी मां

मुझे लगता है मैं आज जो कुछ   हूं अपनी मां की वजह से।मैं उन्हें अपना आईडियल मानती हूं।मेरी आदर्श वही हैं।लोग भले मुझे एंजिलीना जोली कहें मगर शक्ल-सूरत के मामले में मैं अपनी मां की  कॉपी हूं।उन्होंने मुझे जि़ंदगी  के बारे में भी बहुत कुछ सिखाया है। मेरी मां शायरा हैं ,लेखिका हैं।मेरे माता -पिता मुझपर बहुत विश्वास करते हैं।मैं उनकी लाडली हूं।

आउटसाइडर फील नहीं करती

जब मैंने इंडस्ट्री में अपने करिअर की शुरुआत की थी तब मुझे एक आउटसाईडर जैसा फील हुआ था क्योंकि मैं इंडस्ट्री से बिलोंग नहीं करती थी।मुझे कई लोगों ने चांस नहीं दिया पर कईयों ने चांस  दिया और उन्हीं की बदौलत मैं यहां हूं।आज मैं आउटसाईडर जैसा फील नहीं करती।यहां काम करने के दौरान सभी ने मेरा साथ दिया।मेरे चक्रव्यूह के तमाम साथी कलाकारों ने मेरी मदद की। आज इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनकर मैं बहुत खुश हूं।

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